हमारे शरीर को स्वस्थ रखने में आयुर्वेद का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है - त्रिदोष संतुलन। वात (वायु), पित्त (अग्नि/तेज) और कफ (जल/पृथ्वी) ये तीनों दोष जब संतुलित रहते हैं, तो हमारा शरीर स्वस्थ रहता है। इनके असंतुलन से विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं। इस लेख में, हम इन तीनों दोषों के मुख्य लक्षणों, कारणों और उन्हें घरेलू आयुर्वेदिक उपायों से संतुलित करने के तरीकों पर विस्तार से चर्चा करेंगे। इस पोस्ट को अंत तक पढ़ें और अपने स्वास्थ्य को बेहतर बनाएं!
त्रिदोषों की सामान्य जानकारी
आयुर्वेद के अनुसार, हमारा शरीर इन तीन दोषों से मिलकर बना है, और प्रत्येक दोष अपने असंतुलन से विशिष्ट रोगों को जन्म देता है:- वात (GAS): लगभग 80 प्रकार के रोगों का कारण।
- पित्त (ACIDITY): लगभग 40 प्रकार के रोगों का कारण।
- कफ (COUGH): लगभग 28 प्रकार के रोगों का कारण।
वात (GAS) अर्थात वायु दोष
मुख्य लक्षण: वात दोष का मुख्य लक्षण शरीर में दर्द है, जहाँ भी वायु रुककर टकराती है, दर्द पैदा करती है।- पेट दर्द, कमर दर्द, सिर दर्द, घुटनों का दर्द, सीने का दर्द।
- डकार आना, चक्कर आना, घबराहट और हिचकी आना भी इसके लक्षण हैं।
- गैस उत्पन्न करने वाला भोजन: दालें और अन्य गैस बनाने वाले खाद्य पदार्थ, जो यूरिक एसिड भी बनाते हैं। यूरिक एसिड के जमाव से हड्डियों का तरल कम होता है, हड्डियाँ घिसने लगती हैं, और उनमें आवाज़ आने लगती है, जिसे अक्सर "ग्रीस खत्म हो गई", स्लिप डिस्क, स्पोंडिलाइटिस या सर्वाइकल जैसी समस्याएँ कहा जाता है।
- मैदा और बिना चोकर का आटा खाना।
- बेसन से बनी वस्तुओं का सेवन।
- दूध और इससे बनी वस्तुओं का अत्यधिक सेवन।
- आंतों की कमजोरी, जिसका एक कारण व्यायाम न करना है।
- अदरक का सेवन: यह वायु को खत्म करता है, रक्त को पतला करता है और कफ को भी बाहर निकालता है। सोंठ (सूखी अदरक) को रात में गुनगुने पानी के साथ आधा चम्मच खाएँ।
- लहसुन का सेवन: यह किसी भी गैस को बाहर निकालता है। यदि सीने में दर्द हो तो तुरंत 8-10 कली लहसुन खा लें, यह ब्लॉकेज में तुरंत आराम देता है। लहसुन कफ और टीबी के रोगों को भी दूर करता है। सर्दी में 2-2 कली सुबह-शाम और गर्मी में 1-1 कली सुबह-शाम लें। इसे अकेला न खाकर सब्जी, जूस या चटनी में कच्चा काटकर डालें।
- मेथीदाना: यह भी अदरक और लहसुन की तरह ही कार्य करता है।
- गर्म-ठंडे कपड़े से सिकाई: जिस अंग में दर्द हो, उसे छूकर देखें। यदि वह गर्म है तो ठंडी सिकाई करें, यदि ठंडा है तो गर्म सिकाई करें। यदि न गर्म है न ठंडा, तो 1 मिनट गर्म और 1 मिनट ठंडा करके सिकाई करें।
कफ (COUGH) दोष
मुख्य लक्षण:- मुंह और नाक से आने वाला बलगम इसका मुख्य लक्षण है।
- सर्दी, जुकाम, खाँसी, टीबी, प्लूरिसी, निमोनिया आदि इसके मुख्य लक्षण हैं।
- सांस लेने में तकलीफ, अस्थमा या सीढ़ी चढ़ने पर हाँफना।
- तेल और चिकनाई वाली वस्तुओं का अधिक सेवन।
- दूध और इससे बने किसी भी पदार्थ का सेवन।
- ठंडा पानी और फ्रिज की वस्तुओं का सेवन।
- धूल, धुएँ आदि में अधिक समय रहना।
- धूप का सेवन न करना।
- विटामिन C का सेवन: यह कफ का दुश्मन है और इसे संडास के रास्ते निकालता है, जैसे आँवला।
- लहसुन: यह पसीने के रूप में कफ को गलाकर निकालता है। इससे बीपी सामान्य होगा, ब्लड सर्कुलेशन ठीक होगा और नींद अच्छी आएगी।
- अदरक: यह भी सर्वश्रेष्ठ कफनाशक है।
- गरारे: एक गिलास गुनगुने पानी में एक चम्मच नमक डालकर गरारे करें।
- गुनगुने पानी में पैर डुबोना: गुनगुने पानी में पैर डालकर बैठें, 2 गिलास सादा पानी पिएँ और सिर पर ठंडा कपड़ा रखें। यह रोज 10 मिनट करें।
- धूप का सेवन: रोज 30-60 मिनट धूप लें।
पित्त (ACIDITY) दोष
मुख्य लक्षण: पित्त दोष मुख्य रूप से पेट और शरीर में जलन से संबंधित है। वात और कफ दोष में जितने भी रोग हैं, उन्हें छोड़कर शेष सभी रोग पित्त के रोग हैं, जैसे बीपी, शुगर, मोटापा, अर्थराइटिस आदि।- शरीर में कहीं भी जलन होना, जैसे पेट में जलन, मूत्र त्याग करने के बाद जलन, मल त्याग करने में जलन, शरीर की त्वचा में कहीं भी जलन।
- खट्टी डकारें आना।
- शरीर में भारीपन रहना।
- गर्म मसाले, लाल मिर्च, नमक, चीनी, अचार का अधिक सेवन।
- चाय, कॉफी, सिगरेट, तंबाकू, शराब का सेवन।
- मांस, मछली, अंडा का सेवन।
- दिनभर में सदैव पका भोजन करना।
- क्रोध, चिंता, गुस्सा, तनाव।
- दवाइयों का अत्यधिक सेवन।
- मल त्याग रोकना और सभी 13 प्राकृतिक वेग (जैसे छींक, पाद आदि) को रोकना।
- फटे हुए दूध का पानी: गर्म दूध में नींबू डालकर दूध फाड़ें, फिर उस पानी को छानकर पिएँ। यह पेट के सभी रोगों में रामबाण है और सभी प्रकार के बुखार को भी दूर करता है।
- फलों व सब्जियों का रस: जैसे अनार का रस, लौकी का रस, पत्ता गोभी का रस आदि।
- नींबू पानी का सेवन।
- पेट और रीढ़ की हड्डी को ठंडक देना: पेट को गीले कपड़े से ठंडक दें। लकवा अक्सर रीढ़ की हड्डी की गर्मी से होता है, इसलिए गीले कपड़े से रीढ़ की हड्डी पर पट्टी रखें।
- व्यायाम और योग करें।
- गहरी नींद लें।
एनीमा: आंतों की सफाई का महत्व
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जिस इंसान की बड़ी आंत में कचरा होता है, बीमार भी केवल वही होता है। एनीमा एक ऐसी पद्धति है जो बड़ी आंत को साफ करती है और किसी भी रोग को ठीक करने में मदद करती है। संसार के सभी रोगों का कारण इन तीनों दोषों के बिगड़ने से होता है। बड़ी आंत को साफ रखने से कई बीमारियों से बचा जा सकता है।निष्कर्ष
इलाज से बेहतर बचाव है। स्वदेशी बनें, प्रकृति से जुड़ें और आयुर्वेद के इन सरल उपायों को अपनाकर अपने वात, पित्त और कफ दोषों को संतुलित रखें। यह आपके शरीर को स्वस्थ और ऊर्जावान बनाए रखने में मदद करेगा।क्या आप इन उपायों को अपनी दिनचर्या में शामिल करने के लिए तैयार हैं?
Tags
स्वास्थ्य